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- Bhavar Garg
- भँवरलाल गर्ग ठीकरिया, दाहोद रोड़ बाँसवाड़ा - 327001 +91-9928234362
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श्री परशुराम जयन्ती अक्षय तृतीया
श्री परशुराम जयन्ती अक्षय तृतीया
श्री परशुराम स्त्रोत
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जटाभिरामण्डित-दिव्य भालं, रूद्राक्ष-मालोऽर्जित-कण्ठ-दे शम् ।
स्फूर्जत्-कुठांर परिपन्थ-कालं, नमामि रामं जमदग्नि-वालम् ॥१॥
श्रीरेणुका-नन्दनमप्रमेयं , वीराग्र-गण्यं पितृ-भक्त - रामम् ।
तपस्विनां शस्त्र-भूतां वरिष्ठं, नमाम्यहं श्रीयुत-जामदग्न्यम् ॥२॥
वन्दे श्री भार्गवं रामं, जामददग्न्यं महा-बलम् ।
रेणुका-नन्दनं वीरं, कुमारं ब्रह्म-चारिणम् ॥३॥
तपन्तं भास्करं दिव्यं, समुत्साह-स्वरूपकम् ।
कालाग्नि-सदृशं रौद्रं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥४॥
पितृ-भक्तं महा-वीरं, सहस्रार्जुन-नाशकम् ।
शस्र-शास्त्र-कला-रत्नं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥५॥
शाक्तं तपस्विनं सिद्ध, शिवाराधन-तत्परम् ।
सिद्ध-विद्या-प्रदातारं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥६॥
वेद-विद्या धनुर्विद्या, श्रीविद्या-सम्प्रकाशकम् ।
श्री रामं वासुदेवांशं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥७॥
ब्राह्म-तेजः-समायुक्तं, क्षात्र-तेजः-समन्वित् ।
स-शरं चाप-धर्त्तारं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥८॥
कल्प-सूत्र-प्रणेतारं, नेतारं च धनुर्भृताम् ।
सर्व-शत्रु-प्रजेतारं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥९॥
मुकुन्दं सर्व-दातारं, धनुर्वासं धनुर्धरम् ।
जामदग्न्यं महा-देवं, सम्भजे कुण्डिराजितम् ॥१०॥
महा-त्याग-तपोमूर्ति, दान-वीर-शिरोमणिम् ।
सुशीघ्र-गामिनं देवं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥११॥
कोटि-यज्ञ-कृतं देवं, मुनीन्द्र चिर-जीविनम्।
जामदग्न्यं सदा वन्दे, महेन्द्राचल-वासिनम् ॥१२॥
आयुर्विद्या-प्रदातारं, दातारं सर्व-सम्पदाम्।
जमदग्नि-सुतं रामं, भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥१३॥
राम-राम, महा-बाहो, राघवेणाऽभिपूजित! ।
शौर्य तेजः बलं नित्यमतुलं देहि मे प्रभो! ॥१४॥
जामदग्न्य महा-वीर! महेन्द्राचल-वास कृत् ।
आयुर्विद्या धनं देहि, त्वामहं शरणं गतः ॥१५॥
हे ऋचीक-चरु-व्याघ्र-सिंह-शार्दूल- विक्रम! ।
आयुर्विद्यां धनं देहि, प्रसीद वरद प्रभो! ॥१६॥
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श्री परशुराम भगवान की जय !
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लीमथान-परशुराम ः भक्तों की पीड़ाओं का करते है नाश
बांसवाड़ा, भँवर गर्ग। लीमथान गांव स्थित भगवान श्री परशुराम मंदिर आमजन
की अगाध आस्था के केन्द्र है। लीमथान-परशुराम अनन्य भक्तों की पीड़ाओं
का नाश करते है और जीवन में खुशहाली लाते है। इसी कारण जिले भर के
गांव-गांव, ढाणी-ढाणी के श्रद्धालुओं की आस्था इस मंदिर के प्रति है।
वागड़ की अनमोल धरोहर है लीमथान का मंदिर
वागड़ के हर क्षेत्र में पुरा सम्पदा बिखरी पड़ी है। इसका हर कंकर शंकर
हैं और हर पहाड़ी कैलाश है। पुरातात्विक धरोहर की अथाह सम्पदा इसके चप्पे
पर बिखरी पड़ी है। मुगल काल और रियासत काल के स्थापत्य कला के अजूबे यहां
आनेवाले सैलानियों के दांतों तले अंगुली दबाने को मजबुर करते है। अरथूना,
मंगलेश्वर, त्रिपुरा सुन्दरी, लीमथान, जगपुरा, पाटन ऎसे ही स्थान है।
लोढ़ी काशी के नाम से विख्यात वाग्वरांचल की धरोहरों में ऎसी ही एक
विलक्षण धरोहर और स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है लीमथान का परशुराम
मंदिर।
जिला मुख्यालय से मात्र पन्द्रह किमी दूर लीमथान गांव में भगवान परशुराम
का मंदिर भी वागड़ की पुरातन सभ्यता की कहानी को बयां कता है। जनश्रुति
के अनुसार यह मंदिर अज्ञात था। 1980 के बाद इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक
फैलने लगी।
भगवान परशुराम की तपस्या स्थली है लीमथान
त्रिपुरा रहस्य के अनुसार पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय विहीन करने के बाद
परशुराम ने पश्चाताप में त्रिपुरा सुन्दरी की बारह वर्ष तक आराधान की।
उन दिनों बियाबान जंगल और शांत वातावरण को लेकर परशुरामजी ने लीमथान को
अपनी तपस्या के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान समझा होगा।
बांसवाड़ा शहर के दक्षिण पश्चिम छोर पर नवागांव के निकट बने इस मंदिर से
त्रिपुरा सुन्दरी की दूरी मात्र 20 किमी है। यह स्थल आज भी प्रकृति की
सुन्दरता को सहेजे शांत वातावरण में पुण्य सलीला माही की बाई मुख्य नहर
के किनारे अवस्थित है।
पुरातन धरोहर को संयोए रखने अब तक किसी भी प्रकार के प्रयास नहीं किए गए
है। इससे यह पौराणिक स्थल अपनी अवदशा पर आंसू बहाता प्रतीत हो रहा है।
मंदिर में प्रतिष्ठित परशुराम की प्रतिमा बहुत ही दुर्लभ है।
सात चिरंजीवी में से एक भगवान परशुराम का जिले में एक मात्र मंदिर है।
भगवान शंकर के एकमात्र शिष्य श्री परशुराम का जन्मोत्सव सोमवार को होने
से इस बार यहां दर्शनार्थियों की खासी भीड़ रहेगी।
श्री परशुरामजी का स्वरूप जितना क्रोध और ेज को लिए है उतना ही कोमल और
सहृदय भी है। क्षेणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा के लक्षणों से युक्त भगवान
परशुराम ब्राह्मणों के आदर्श चरित्र है।
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(भँवर गर्ग)
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