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Posted by : Bhavar Garg
Thursday, May 1, 2014
श्री परशुराम जयन्ती अक्षय तृतीया
श्री परशुराम स्त्रोत
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जटाभिरामण्डित-दिव्य भालं, रूद्राक्ष-मालोऽर्जित-कण्ठ-देशम् ।
स्फूर्जत्-कुठांर परिपन्थ-कालं, नमामि रामं जमदग्नि-वालम् ॥१॥
श्रीरेणुका-नन्दनमप्रमेयं, वीराग्र-गण्यं पितृ-भक्त - रामम् ।
तपस्विनां शस्त्र-भूतां वरिष्ठं, नमाम्यहं श्रीयुत-जामदग्न्यम् ॥२॥
वन्दे श्री भार्गवं रामं, जामददग्न्यं महा-बलम् ।
रेणुका-नन्दनं वीरं, कुमारं ब्रह्म-चारिणम् ॥३॥
तपन्तं भास्करं दिव्यं, समुत्साह-स्वरूपकम् ।
कालाग्नि-सदृशं रौद्रं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥४॥
पितृ-भक्तं महा-वीरं, सहस्रार्जुन-नाशकम् ।
शस्र-शास्त्र-कला-रत्नं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥५॥
शाक्तं तपस्विनं सिद्ध, शिवाराधन-तत्परम् ।
सिद्ध-विद्या-प्रदातारं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥६॥
वेद-विद्या धनुर्विद्या, श्रीविद्या-सम्प्रकाशकम् ।
श्री रामं वासुदेवांशं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥७॥
ब्राह्म-तेजः-समायुक्तं, क्षात्र-तेजः-समन्वित् ।
स-शरं चाप-धर्त्तारं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥८॥
कल्प-सूत्र-प्रणेतारं, नेतारं च धनुर्भृताम् ।
सर्व-शत्रु-प्रजेतारं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥९॥
मुकुन्दं सर्व-दातारं, धनुर्वासं धनुर्धरम् ।
जामदग्न्यं महा-देवं, सम्भजे कुण्डिराजितम् ॥१०॥
महा-त्याग-तपोमूर्ति, दान-वीर-शिरोमणिम् ।
सुशीघ्र-गामिनं देवं, जामदग्न्यं नमाम्यहम् ॥११॥
कोटि-यज्ञ-कृतं देवं, मुनीन्द्र चिर-जीविनम्।
जामदग्न्यं सदा वन्दे, महेन्द्राचल-वासिनम् ॥१२॥
आयुर्विद्या-प्रदातारं, दातारं सर्व-सम्पदाम्।
जमदग्नि-सुतं रामं, भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥१३॥
राम-राम, महा-बाहो, राघवेणाऽभिपूजित! ।
शौर्य तेजः बलं नित्यमतुलं देहि मे प्रभो! ॥१४॥
जामदग्न्य महा-वीर! महेन्द्राचल-वास कृत् ।
आयुर्विद्या धनं देहि, त्वामहं शरणं गतः ॥१५॥
हे ऋचीक-चरु-व्याघ्र-सिंह-शार्दूल-विक्रम! ।
आयुर्विद्यां धनं देहि, प्रसीद वरद प्रभो! ॥१६॥
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श्री परशुराम भगवान की जय !